विवेक कुमार सिन्हा

पिता श्री अरविंद कुमार सिन्हा व माता श्रीमती वीना सिन्हा का आशिर्वाद पाकर इल्लाहाबाद से सिविल इंजीनीरिंग पूरी करने के बाद दुबई पहुंचे विवेक सिन्हा ने अपने सफ़र की सुरूआत कड़ी चुनौतियों के बीच की। दुबई की एक बड़ी कंस्ट्रक्शन कंपनी में करीब डेढ़ साल तक काम करते हुए उन्होंने अमीरात सरकार के लिए कई प्रोजेक्ट्स पर काम किया जिसके चलते उनकी सरकारी अफ़सरों अच्छी पहचान हो गई। उन्हीं के द्वारा प्रोत्साहित किए जाने पर विवेक जी ने अपनी जमापूंजी से सन 2009 में दुबई में विजन कैटलिस्ट नाम से एक कंस्ट्रक्शन कंपनी खड़ी की। निर्माण कार्यों में गहरी रुचि रखने वाले विवेक जी ने कड़ी मेहनत और लगन से अपनी कंपनी को सफलता की राह दिखाई। पिछले 11 साल के प्रयासों और निष्ठा की मदद से आज विवेक जी का व्यापार कई देशों में मज़बूती आगे बढ़ रहा है और वो आज दुबई व भारत सहित कई देशों में कुल 14 कंपनियों के मालिक हैं।

विवेक सिन्हा को इटली, तंज़ानिया व अमीरात सरकार द्वारा सम्मानित किया जा चुका है तथा वे इटली की संसद में भाषण दे चुके हैं। विदेशी टीवी व प्रिंट मीडिया में विवेक सिन्हा एक जानी-मानी हस्ती हैं।

ज़मीन पर कब्ज़ा करने के बाद विवेक जी का अगला लक्ष्य समुद्र की लहरों पर काबू पाने का है यानि वो सिविल के बाद मरीन इंजीन्यरिंग के क्षेत्र में भी कदम रखने की तैयारी में हैं। विजन कैटलिस्ट के ज़रिए ऊचाइयाँ छूने के बाद विंध्याचल सेवा संस्थान के ज़रिए विवेक जी लगातार ज़रूरतमंदों तक पहुँचकर अपनी जड़ें भी मज़बूत किए हुए हैं।


 

अरविंद कुमार सिन्हा

लंबे समय से लखराओं पूजन की इच्छा रखने वाले परम हनुमान भक्त अरविंद कुमार सिन्हा कानपुर की ऑर्डिनेन्स फ़ैक्टरी में सरकारी अफ़सर रहे। धन का अभाव होने के बावजूद जन कल्याण में तत्पर रहने वाले अरविंद जी की पैंतीस साल पुरानी मनोकामना आख़िर उनके बेटे के सफ़ल होने के बाद पूरी हो सकी।

हरपुरनाग में पूजन के लिए अपने गाँव गए अरविंद जी को अपने दादा जी कवि किंकर के कुछ दस्तावेज़ मिले। उनके द्वारा बनवाए गए महाबीर मंदिर व किए गए अन्य समाज सेवी कार्यों से प्रभावित होकर अरविंद जी ने गाँव के उत्थान के लिए कार्यरत रहने का फ़ैसला किया। गाँव में रहते हुए उन्होंने अपने बेटे से सहयोग से 2012 में विंध्याचल सेवा संस्थान की स्थापना की और लगातार समाज कल्याण में लगे रहे।

एक उम्र के बाद अरविंद जी ने संस्थान के सभी कार्यों का ज़िम्मा अपने परिवार के सदस्यों को सौंप दिया और मंदिर निर्माण सहित सभी काम आपस में बाँट दिए गए। किडनी खराब होने के बाद लगातार बीमार रहे अरविंद जी मंदिर निर्माण के दौरान ही 17 जून 2016 को स्वर्गवाससी हो गए। उनके जाने के बाद पारिवारिक सदस्यों ने कार्यभार संभाला और विंध्याचल सेवा संस्थान के ज़रिए लोगों से जुड़े रहे।

 
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